अतुल के दोहे

भाग दौड़ सी जिन्दगी, अम्ब विमल सी सोच।
भाव दीप बाती बने, तब खुशहाली होत॥१

आओ मिलकर सब करें, काव्य सुधा रस पान।
खुशी देख दीपक जना, उजला सकल जहान॥२

सपनों में बैठे हुये, लिये हुये सब अंग।
प्रेम भाव अलाप रहे , झूठ भजन सत्संग॥३

उलझी नजरें हर तरफ, नहीं बात का अन्त।
चलती रहती है कलम, भाषा भाव अनन्त॥४

सुख सत्ता की चाह में, राजा देते भोज।
बातें सुन कर ज्ञान की, खिलते आज सरोज॥५
                                  ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
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ऐ जिन्दगी जरा बता, क्या है तुझमें खास।
आज का कुछ पता नहीं, कल की क्युँ है आस॥६

सुबह सुबह में आज हम, लेकर बैठे चाय।
सर्द गुनगुनी धूप में, मिली मुझे बस राय॥७

उलझन के इस दौर में गायब है मुस्कान।
सुलझाने की आश में, खड़े हो गये कान॥८

जीवन के इस राह में, हुयी कहीं पे चूक।
शाहस खोये हैं सभी, आज खड़े सब मूक॥९
                             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
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 बात बात में यहाँ पर, गुरू देत है ज्ञान।
शिष्य भविष्य की सीढ़ी,  कहताआज विज्ञान॥१०

समय समय से बोलता, गुरू ज्ञान आधार।
शुन्य को अंक बनाना, उसका है अधिकार॥११

गुरू के बिनु ज्ञान नहीं, मानी युग ने बात।
भावुक जीवन जी रहे, काट रहे सब रात॥१२

जीवन खुशियाँ देख कर, करता ह्रदय विचार।
गुरू न होता जो अगर, आता कहाँ निखार॥१३

हँसता फूलों को देख,  भरता है मुस्कान।
जान सपनों में भरके, बनता गुरू महान॥१४

हौसला सीने में लिये, कभी न मानो हार।
कहता रहता गुरू है, है जीवन में धार॥१५

विजित तर्क ही रहा है, गुरू शिष्य का मान।
नैतिक मूल्य सदा जिन्दा, तू इसको पहचान॥१६

माता पिता और गुरू, इस जीवन की राग।
सदा सदा इनके यहाँ, जुड़ते रहते ताग॥१७

जीवन सुख से है भरा, यही बसन्ती बाग।
गुरू सिखाता आज नित, आलस से तू जाग॥१८

नमन गुरू को करूँ मैं, नतमस्तक हो आज।
 प्रभु सम ही तो दिख रहे,  सदा गुरू महराज॥१९
                                         ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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