ग़ज़ल

दिल का दीपक जलता रहता,
चोट जिगर का सहता रहता।

गीत तराना दिल को भाता,
मुझसे हर पल कहता रहता।

दिल में है जो गम का सागर,
आँसू बनकर बहता रहता।

नफरत चाहत दिल का हिस्सा,
हसरत बनकर चलता रहता।

नजरों में अब नजरें छिपती,
सूरज भी तो ढलता रहता।

अपने दिल के हिस्से में तो,
बस सपना ही पलता रहता।

वो क्या जाने पीर पराई,
अपनी धुन जो रमता रहता।

पल कहता है सब सहता है,
सब चलता है चलता रहता॥
                  ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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