बुझते चिराग

बुझते चिरागों की 
चमकीली लौ,
वक्त बेवक्त मुझको
याद आती है।
दिल हँसता है
रोता है
गाता है
उन पर
जो इबादत में डूबे
पल पल हर पल
फरियाद करते हैं।
कुछ कच्चे सपनें
आँखो में दिनभर
तरसते हैं।
पैरो तले दबे दर्द
हमेशा उकसते हैं
अन्दर की पीड़ा जगती है
फिर उदास होकर
लक्ष्य त्याग कर
दुर्गम पथ पकड़े
नीद की झील में
डूबकी लगाती है।
आज कुछ लोग
ख्वाबों में टहलते हैं
गर्दिशों में रहते हैं,
फिर भी उनकी आँख के आँसू
इस उम्र में, 
यादों की चौखट पर पाँव रखे
तकलीफों में उनकी हकीकत
बयाँ करते हैं।
आज सारे दिल के दरवाजे
लोगों की फितरत बताने के लिए
मुकद्दर की रेखा दिखाने के लिए
और
खुद की दुनिया सजाने के लिए
खुलें हैं।
हो सके तो आप भी
अपने ख्वाबों की नगरी
हकीकत में सजाईये।
मुझे अपने जीवन के
छिछले सागर की चिन्ता
आपसे ज्यादा है,
और वही चिन्ता
आज इन आँखों को
मदहोशी में लपेटे सोने नहीं देती।
                        ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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