कभी कभी अल्फ़ाजों में

कभी कभी अल्फ़ाजों में,
मैं दर्द महसूसता हूँ,
कभी कभी दर्दों में ही,
अल्फ़ाज महसूसता हूँ।

ख्वाहिशों के सभी पन्ने,
थक जाते जब बातें कर,
थम जाती साँसें मेरी,
कुछ अल्फ़ाजों को पाकर।

कुछ अन्जानें छूट गये,
कुछ पहचाने रूठ गये,
कुछ अपने हैं साथ चले,
कुछ अपने भी रूठ गये।

मंजिल तो बस मंजिल है,
शायद खाबों की नगरी,
जज्बातों के साथ चलो,
कहती भावों की नगरी।

कुतर रहे भाव हमारे,
आँखों के सपने हरदम,
आँसू पीड़ा लाचारी,
भरते अब मुझमें दमखम।

सुकूं नहीं मिलता मुझको,
दर्द की भावना पाकर,
लफ़्ज बयां होते जाते,
आँखों में अश्क भर भरकर।

लोगों का ताना बाना,
ख्यालों का आना जाना,
फिर भी सबका हाथ साथ,
रखकर है  साथ निभाना।

जीवन के इस पड़ाव में,
दौर सलामत पता नहीं,
मौन मौन सी रातें हैं,
कब जल जायें पता नहीं॥
              ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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