ग़ज़ल : पन्ना

यही साहिल यही कश्ती यही पतवार है पन्ना​,​​
​​​किताबों के समन्दर का यही मझधार है पन्ना​।​​

​​बुजुर्गों की दुआओं से बचे हैं हम बलाओं से,​​​
​​​विरासत में मिला हमको यही संसार है पन्ना​।​​

​सलामत ऐ खुदा रखना हमारी लेखनी को तुम
​हमारे गीत ग़ज़लों का यही सत्कार है पन्ना​।

लगा दे आग पानी में मचलती जिन्दगानी में,
जला दे घर किसी का तो यही बेकार है पन्ना।

बहुत आसान करना है किनारा अब गरीबों से,
बना अब मजहबों खातिर यही दीवार है पन्ना।

सिखा दे प्यार से रहना मिलाकर एक दूजे को,
कहूँगा मैं हमेशा फिर यही स्वीकार है पन्ना।।

                                      ©अतुल कुमार यादव

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