नाक में दम

        मई जून का महिना था। सूरज प्रतिदिन सिर पर तेज किरणों के साथ मडराता था। जिससे गरमी इतनी बढ़ गयी थी कि लोगों से बरदास्त ही नहीं हो रही थी। हर कोई पसीने से तर-ब-तर मिलता था। काम करना भी दुश्वार हो गया था। यहां तक कि गर्मी से धरती भी परेशान हो गयी थी। बारिश के आसार दूर तक नजर नहीं आ रहे थे। जहां से देखो वही से विषैले साँप निकल रहे थे। चुहे घर में दौड़ लगाते, भागते और जो मिलता कुतरते रहते थे मानो वो भी गर्मी से बेहाल अपना गुस्सा उतार रहे हो। कुत्ते-बिल्लियाँ भी कम नहीं, घर तो छोड़िये पूरे मुहल्ले के नाक में दम कर दिया था। उस गर्मी में सुविधायुक्त घरों के लोग घर में रहना ही उचित समझ रहे थे।।
           कुछ दिन बाद तीन दिन तक रूक रूक कर बारिश होती रही। सुख रहे पेड़ पौधों में हरियाली फिर से दिखने लगी। सभी चैन की नींद सोने लगे। एक दिन गीत गाती कोयल आम की शाखा पर बैठे तोते से बोली : जब गर्मी थी तब भी इंसान घर में ही बैठा था और अब जब मौसम इतना सुहाना हो गया, फिर भी घर में ही बैठा है। क्या इतने सुहाने मौसम के मजे भी नहीं ले सकता क्या?? अमरूद की डाल पर बैठा तोता सुन कर भावुक हो गया और जवाब दिया। कोयल बहन ऐसी बात नहीं है, मानव आज हर सुविधा घर में कैद कर रखा है। वो जब चाहे तब जिस मौसम का चाहे उस मौसम के मजे ले सकता है।। फिर कोयल बोली : फिर हमारा तो दुर्भाग्य है कि हम मानव नहीं हुए। तोता जवाब दिया : नहीं, यह हमारा सौभाग्य है कि हम मानव नहीं हुए। मानव होते तो हम आज सुविधाओं के गुलाम होते। शुक्र है कि हम आजाद है। जहां चाहे जा सकते है जहां चाहे बैठ सकते है।। पर मानव नहीं। मानव को आज बाहर कपड़े खराब होने का डर, बिमार होने का डर, जाति-धर्म-मजहब आदि का डर और तरह तरह की असुविधायें नजर आती है। इतना सुनते ही कोयल बोली अच्छा हुआ जो ईश्वर ने हमें पंक्षी बनाया। आज तो मानव खुद ही खुद के नाक में दम कर रखा है।

                                                    ©अतुल कुमार यादव

No comments: