माँ की तकलीफ

     माँ! परी ने फैसला कर लिया है वो आपके साथ नहीं रहेगी। बेटा झल्लाते हुए बोला।
     माँ ने सिर उठाया और आश्चर्य भरे अंदाज मे धीरे से कहा- क्यों? क्या हो गया बेटा? मेरी कोई बात बूरी लग गयी क्या?
     बात बुरी लगे या ना लगे, कह दिया वो आपके साथ नहीं रहेगी तो बस नहीं रहेगी। पुन: झल्लाते हुए बेटा बोल उठा।
   इस तरह अचानक झल्लाते देख माँ के अन्दर हजारों सागर की लहरें एक साथ उठने लगी। मन के भाव उन लहरों में गोता लेने लगे- जिसकी ख़ुशी के लिए अपनी पूरी जिन्दगी खपा दी, रात को न रात समझी और ना ही दिन को दिन।
बहुत सोच समझ कर माँ ने सकुचाते हुए कहा- तो फिर परी रहेगी कहाँ? अगर उसे मेरे साथ रहने में तकलीफ है तो बेटा तू अपने साथ ही शहर लेता जा। माँ की यह बात सुनते ही- हाँ, हाँ तुमसे यही उम्मीद भी थी, तकलीफ तो तुम्हे है जो तुम उसे घर पर रहने ही नहीं देना चाहती। लेता जाऊँगा साथ। इतना कहते ही प्रतीक वापस परी की ओर मुड़ता है और माँ बड़बड़ाती है- बस यही दिन देखना रह गया था बुढ़ापे में, इसी दिन के लिए पाल पोश कर इतना बड़ा किया था।

                                                                                               ©अतुल कुमार यादव

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