चिड़िया

कभी पेड़ पर बैठी चिड़िया मुझको धीरज देती है।
कभी सुनाकर गीतों को मन की पीड़ा हर लेती है।।


कभी उसे मैं चुग्गा देता,
कभी उसे मैं सहलाता हूँ।
कभी कभी मैं व्याकुल होकर,
उसे ढूढ़ने लग जाता हूँ।
अद्भुत उसका सम्मोहन है,
अन्तर-मन को छू लेता है।
तूफानों से उसका लड़ना,
मुझको साहस दे देता है।
फुदक फुदक कर चलती है तो साहस मन भर देती है।
कभी सुनाकर गीतों को मन की पीड़ा हर लेती है।।


तिनका-तिनका चुन कर लाती,
सुन्दर सा है नीड़ बनाती।
उसी नीड़ में बैठी चिड़िया,
सही कहानी हमें सुनाती।
देख सून कर उसकी बातें,
मैं खुद विह्वल हो जाता हूँ,
उसके सपने उसकी हिम्मत,
देख सदा मैं चल पाता हूँ।
उसको पंखों की ताकत अब मुझको हिम्मत देती है।
कभी सुनाकर गीतों को मन की पीड़ा हर लेती है।।


पतझड़ में पत्ते गिर जाते,
पेड़ों की टहनी दिखती है।
उस टहनी पर देख घरौंदा,
मेरे मन पीड़ा उठती है।
घर उसका ना बिछड़े उससे,
कुछ सपने पलने लगतें हैं।
उस चिड़िया के लिए आँख से,
आँसू तक झरने लगतें हैं।
आखों के आँसू की धारा मन को घायल कर देती है।
कभी सुनाकर गीतों को मन की पीड़ा हर लेती है।।


सतरंगी अतरंगी जीवन,
पतझड़ बनकर आता जाता।
चिड़ियों के मन को छूकर ही,
अक्सर नीर नयन बरसाता।
धानी-धानी चूनर लेकर,
अगला पल है मन हरषाता।
पेड़ पात पर नजर पड़ी तो,
छोटा बच्चा उधम मचाता।
देख नीड़ में छोटा बच्चा चिड़ियाँ खुश हो लेती है।
कभी पेड़ पर बैठी चिड़िया मुझको धीरज देती है।।

                                              ©अतुल कुमार यादव

No comments: