हे नाथ सुनो

हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥

अन्तर में है ध्यान तुम्हारा,
कानों में है गान तुम्हारा,
इस अगणित बेला में मेरे,
हर पल होवे साथ तुम्हारा,
सेवक बन जब करूँ नमन तो,
हो नमन स्वीकार हमारा,
हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥

मेरे मन की अमिट लकार,
दिल तोड़ रही है बारम्बार,
मुश्किल ना है कुछ दुनिया में,
तब ना जाऊँ खाली हाथ,
सता रही आकुलता मुझको,
अन्तर का बन जाओ हार,
हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥

तुमसे होती मेरी क्रीड़ा,
सहन ना होती कोई पीड़ा,
आश लगाऊँ कृपा ना पाऊँ,
दुख उठाऊँ दरश ना पाऊँ,
ऐसा ना हो मेरे नाथ अब,
हाथ फेर दो मेरे माथ तब,
हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥

नाम ढूढ़ता पहचान ढूढ़ता,
अब अपनी आवाज ढूढ़ता,
पल पल गुजरे पल में अपने,
शतदल का अम्बार ढूढ़ता,
अभी खोज ना हुयी खत्म है,
ऐसे में तुम रहना साथ,
हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥

तुम्हारें चरणों में मै लोटू,
रज कण में बन जाउँ छोटू,
पड़ा रहूँ आशन के नीचे,
दर्शन से मै आँखे सीचूँ,
सदा सत्य तुम राह दिखाना,
जीवन बर का साथ निभाना,
हे नाथ! सुनो तुम मेरी पुकार,
मन ब्याकुल होता बार बार॥
             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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