तन
मन
ह्रदय
दॄष्टि
मौन
क्रन्दन
धैर्य
और शाहस
सब रूप में
बाधित है।
रात में जागती भोर की
सम्भावनाओं को
क्युँ भरमा रही हो??
मेरी दॄष्टि सीमित है
आशा-निराशा के
जीवन में
हताशा-घुटन को
आवाज देकर
तन मन को
दुविधा में डाल
व्यथा को माथ लिये
अब क्युँ सकुचा रही हो?
मेरी आश
तुम पर टिकी है
हो सके तो
मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दो।
मेरा दिल
आज
उदासियों से भरा हैं
कुछ शिकायत हो
तो शिकायत दे दो।
हजारों खुशियाँ
तुम्हारे जेहन में
साथ साथ चलती हो
तो हँसी-खुशी
सुझाव
और
बस अपनी
इनायत दे दो॥
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
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