प्रिये तुम्हारी मित्रता को

प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।
नहीं पहचानता तुमको,
फिर भी बात करता हूँ।
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।

दोस्त बन कर रहूँ तुम्हारा,
यह करार करता हूँ,
रहे हर पल होठों हँसी,
दर्द का बंटाधार करता हूँ,
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।

है जन्म-दिन आज तुम्हारा,
इसकी सौगात भरता हूँ,
जियो हजारों साल तुम,
यही कामना बार बार करता हूँ।
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।

आन बान मान मिले हर जगह,
ऐसी दुआ सौ बार करता हूँ,
मंजिल सोहरत मिले तुमको,
"अतुल्य" वैभव नाम करता हूँ,
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।

गर तू आरती है दीप की,
तो तेल बाती प्रकाश भरता हूँ,
स्वयं की मित्रता भेंट आज,
तुमको उपहार करता हूँ
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।

नहीं पहचानता तुमको,
फिर भी बात करता हूँ,
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ,
प्रिये। तुम्हारी मित्रता को आज,
मै स्वीकार करता हूँ।।
       ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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