नैनन के बान

नैनन के बान चला सजनी,
पिय को यूँ खूब रिझावत है।
व्याकुल पिय के नैना भी है,
जो बार बार लड़ी जावत है॥

बैठि अटारी जब जब सजनी,
यूँ मन्द मन्द मुस्कावत है।
तब तब पिय के दिल में अपना,
सुन्दर सा चित्र बनावत है॥

चित्रों की इस नगरी में  अब,
पिय को अपने हर्षावत है।
हर्षित नगरी में फिर सजनी,
अपने पिय के मन भावत है॥

नैनन के बान चला सजनी,
पिय को यूँ खूब रिझावत है॥
             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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