माँ तेरे आँचल में

माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

उलझे सुलझे इस जीवन में,
जब मन भटकने लगता है,
दुनिया के इस झंझावातों से,
कही दूर जाने का मन करता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

कम ताप वाली बस्ती छोड़कर,
तेरी उस अद्भुत सी दुनिया में,
जिसमें बस सूकून पलता है,
उसमें आने को जी करता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

कामयाबी साथ चला करती है,
पानी में भी आग लगा करती है,
सारी दुआयें दौड़ती आती है,
जब माथे पर हाथ फिरता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

अक्सर बिगड़ी बिगड़ी बातें होती,
दुनिया जज्बात कहा समझती है,
यह बुझे कभी ना जीवन दीप,
ममतामृत पीने को जी करता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

जिन्दगी चलती रहती है,
सूरज निकलता ढलता है,
फिर भी तेरी गोदी में,
पड़ा रहने को जी करता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥

फूलों की राह बहूत आसान,
पर काटों की बहूत कठीन है,
फिर भी दोनों पर उँगली पकड़,
संग चलने को जी करता है,
माँ तेरे आँचल में फिर से,
सो जाने को दिल करता है॥
            ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

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