अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
एक एक तारों की बातें,
घर घर की विरही रातें,
सुखी दुखी आनन्द समर की
सत्य सदा गुणगान करेंगे,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
रे कौन रोकता है पीछे से,
हमको अब कौन डरा रहा,
बेखौफ नीडर बेबाक स्वर,
सब कलम का शृंगार करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
अन्जान पथिक को पाकर द्वार,
हम परिचय करते सरोकार,
विवशता के इस महासिन्धु में,
हम युवा सदा सम्मान करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
कुछ स्वप्न देखने की आशा,
सागर के गहराई सी भाषा,
जीवन हो जाये जो जीवन गाथा,
तो हिन्दी पर अभिमान करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
जो जग की है सर्व कल्याणी,
जननी ह्रदय की मधुरिम वाणी,
हँस मानस के इस महामरण में,
कुछ परिन्दे फिर उड़ान भरेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
अँन्ध उर का काजल जल,
खिल उठा ज्योति शतदल,
मृदुल स्पर्श लगे हर पल,
इस पर अब विचार करेंगे,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।।
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
बस मर्यादा की बात करेंगे।
एक एक तारों की बातें,
घर घर की विरही रातें,
सुखी दुखी आनन्द समर की
सत्य सदा गुणगान करेंगे,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
रे कौन रोकता है पीछे से,
हमको अब कौन डरा रहा,
बेखौफ नीडर बेबाक स्वर,
सब कलम का शृंगार करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
अन्जान पथिक को पाकर द्वार,
हम परिचय करते सरोकार,
विवशता के इस महासिन्धु में,
हम युवा सदा सम्मान करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
कुछ स्वप्न देखने की आशा,
सागर के गहराई सी भाषा,
जीवन हो जाये जो जीवन गाथा,
तो हिन्दी पर अभिमान करेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
जो जग की है सर्व कल्याणी,
जननी ह्रदय की मधुरिम वाणी,
हँस मानस के इस महामरण में,
कुछ परिन्दे फिर उड़ान भरेंगें,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।
अँन्ध उर का काजल जल,
खिल उठा ज्योति शतदल,
मृदुल स्पर्श लगे हर पल,
इस पर अब विचार करेंगे,
अब लेखन की मर्यादा में,
बस मर्यादा की बात करेंगे।।
©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"
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