इस जिन्दगी ने पल-पल

इस जिन्दगी ने पल-पल मुझे रुलाया बहूत है,
हर गली हर मोड़ पर मुझे सताया बहूत है।

एक पल की भी खुशी रास ना आयी कभी,
जख़्म दे देकर हर घड़ी मुझे रुलाया बहूत है।

हमेशा के लिये जब भी दूर जाना चाहा इससे,
जरा जरा सी खुशी देकर मुझे बहलाया बहूत है।

चाहतों को मेरे हर रोज इक नया नाम देकर,
कभी पागल तो कभी दिवाना बतलाया बहूत है।

करू बदनाम भी इसे इस जहाँ में अपने संग,
आखिर इसी के काबिल मुझे बनाया बहूत है।

दिल को मेरे खिलौना बना कर हर घड़ी खेला,
जब थक गयी तब मेरे दिल को ठुकराया बहूत है।

क्युँ किया ऐसा पुछा जब मैनें उससे प्यार से,
शौक खेलने का उसने खुद को बताया बहूत है।

माना था कभी जिसे हमने अपना सारा जहाँ,
छोड़कर मुझे मझधार में उसने मुस्काया बहूत है।

किया था हजार वादा उसने संग जीने मरने का,
मगर गैर का हाथ थाम आज मुझे भुलाया बहूत है।

मुस्काया करता है जो आज मेरी बर्बादियों पर,
उसका आँशिया भी हर बार हमने सजाया बहूत है।

भूल गया है आज-कल वो मुझको कुछ इसकदर,
मिलकर आज हमसे हमें अजनवीं बुलाया बहूत है।

आह थी जो तेरी आज काम आ गयी है "अतुल",
ठुकरायेगा वो भी जिसकी खातिर हमें ठुकराया बहूत है॥
                                             ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"