चित्र - गूगल से साभार
जीवन है एक कठिन पहेली,
हर दम उलझी रहती है,
साँसो में जितना उलझाओ,
उतनी सुलझी रहती है।
इससे सम्भव रहती है,
बिन साँसों के इस मछली में,
हर पल तड़पन रहती है।
सूरज छिपा और साँझ हुयी,
कुछ उलझी कुछ सुलझी,
अभी कुछ बाकी रहती है।
लक्ष्य सामने जब दिखता हो,
नित नित चलती रहती है,
जब जब मन में भटकन होती,
तब तब पीछे हटती रहती है।
प्रतिदिन की बड़बड़ में यारों,
कुछ कुछ कहती रहती है,
गड़बड़ हो या हो बड़बड़,
पल पल बढ़ती रहती है॥