जब कभी हार कर

                                                                                         चित्र - गूगल से साभार


जब कभी हार कर धरा पर गिर पड़ा,
वक्त लगा फिर जीत की तरफ चल पड़ा,
कहीं पथ पर गिरा ठोकरों से टकरा कर,
धुल झाड़कर आगे की तरफ चल पड़ा,
अगर कहीं दुःख ने गिराया है धोखे से,
रोया, आँसू पोछा फिर आगे को चल पड़ा,
यूँ ही गिरना-पड़ना तो बस लगा रहा,
सम्भलना कहाँ कहाँ सोचता चल पड़ा,
कोई बात तो जरूर है गिरने-पड़ने में,
हर दम नई नसीहत लेता चल पड़ा,
कभी जो आँखों से आँसू बन कर गिरा,
आँचल में गिरता सिमटता चल पड़ा,
जब किसी की नजरों से गिरा "अतुल",
बस गिरता,गिरता, गिरता ही चल पड़ा,
उठने की गुंजाईस भी ना रही अब कोई,
बस दिल से उतरता,उतरता ही चल पड़ा॥