चित्र - गूगल से साभार
कभी कभी मैं तुमसे मिलने,
दिल के भीतर तक जाता हूँ।
मन तब गुमसुम रहता है,
खामोश नजर तब आता हूँ।
होंठ कापते रहते है,
पलकें नम हो जाती है।
जैसे आँधियों में जलता दिया,
देख बाती घबराती है।
हाथ थामता हूँ उसपल,
गले तुम्हें लगता हूँ।
कभी कभी मैं तुमसे मिलने,
दिल के भीतर तक जाता हूँ।
अपने भी कुछ सपने है,
कुछ अपनी मजबूरी है।
यूँ तो जीवन साथ है अपने,
फिर पल पल बढ़ती दूरी है।
दूरी अब और नहीं अच्छी,
ये खुद को मैं समझाता हूँ।
कभी कभी मैं तुमसे मिलने,
दिल के भीतर तक जाता हूँ।
मन भी अब गुमसुम रहता,
खामोश नजर ही आता हूँ॥