दुविधा

कितनों को बिमार किया है फिर बैठी मुस्काओ ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी मधु परोसकर पागल क्यूँ कर देती है,
आँख तुम्हारी ह्रदय भेदकर घायल क्यूँ कर देती है,
आँख तुम्हारी अगणित सुर-लय अलट पलट कर देती है।
आँख तुम्हारी बासुरियों को पायल क्यूँ कर देती है,
समझ नहीं पाया रहस्य मैं आकर तुम समझाओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी प्रश्न-वाचिका जैसी क्यूँ लहरी है,
आँख तुम्हारी सार-वाचिका जैसी क्यूँ गहरी है,
आँख तुम्हारी तो अभी भौरों की गति वाली थी,
आँख तुम्हारी मुझे देख बोलो फिर क्यूँ ठहरी है,
पुष्टि करो इस संकेतक का अब और तड़पाओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी झुकी पलक के ऊपर क्यूँ तिरती है,
आँख तुम्हारी उठी पलक को पाकर क्यूँ गिरती है,
आँख तुम्हारी जब अमृत में तन से मन तक डूबी है,
आँख तुम्हारी तब घनी घटा चंदा पर क्यूँ घिरती है,
इस उलझे मन को आकर अब तुम्ही समझाओ ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी दिन दुपहरिया सपने क्यूँ बुनती है,
आँख तुम्हारी बिना कही बातें अक्सर क्यूँ सुनती है,
आँख तुम्हारी चिंतक चिन्तन और विषय जब खुद ही है,
आँख तुम्हारी कब कैसे किसको और क्यूँ चुनती है,
कुछ प्रश्नों का खोया उत्तर पता निशान बताओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।