ज्ञान ताक पर : स्वागता छन्द

ज्ञान ताक पर दर्ज हमारा,
देख आज यह फर्ज हमारा।
नोटबन्द बुनियाद डली है,
खोज मात्र यह जीत भली है॥

तोड़ इश्क़ फरियाद जगी है,
राज जान यह आग लगी है।
राग द्वेष भर कौम जगे हैं,
आह आह कर चोर भगे है॥

जीत धर्म पथ शोर मचाती,
मौन रात बस भोर जगाती।
आज देख यह राह सुहानी,
सोचती कलम सार कहानी॥

हाव भाव कविता बन आयी,
गाँव गाँव चुपचाप सुनायी।
पेट पीठ अब दौलत भाई,
देख आज सब देत बधाई॥
           ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"

सब रूप में बाधित

तन
मन 
ह्रदय
दॄष्टि
मौन
क्रन्दन
धैर्य
और शाहस
सब रूप में
बाधित है।
रात में जागती भोर की 
सम्भावनाओं को 
क्युँ भरमा रही हो?? 
मेरी दॄष्टि सीमित है 
आशा-निराशा के 
जीवन में 
हताशा-घुटन को 
आवाज देकर 
तन मन को 
दुविधा में डाल 
व्यथा को माथ लिये 
अब क्युँ सकुचा रही हो? 
मेरी आश 
तुम पर टिकी है 
हो सके तो 
मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दो। 
मेरा दिल 
आज 
उदासियों से भरा हैं 
कुछ शिकायत हो 
तो शिकायत दे दो।
हजारों खुशियाँ 
तुम्हारे जेहन में 
साथ साथ चलती हो 
तो हँसी-खुशी 
सुझाव 
और 
बस अपनी 
इनायत दे दो॥
     ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"