जो पुलकित पंख पंक्षी के टुटे

जो पुलकित पंख पंक्षी के टुटे,
सच यही हौसला पंक्षी का छूटे।

एक आश एक विश्वास,
एक धरती एक आसमाँ,
जब-जब दोनों को एक करना,
एक विह्वल मन परिन्दा सोचे,
तब तब परिन्दों के ख्वाब है टूटे,
जो पुलकित पंख पंक्षी के टुटे।

एक परिन्दा कुछ स्वप्न लिये,
जब जब आसमां में रीता है,
सच तो बस मैं यही कहता हूँ,
तब तब नया इतिहास जीता है,
पर जब इन नादान परिन्दों पर,
जब मनुष्य के तीर है छुटे,
तब पुलकित पंख पंक्षी के टुटे।

हौसला था खुद में,
विश्वास बस पंख का,
धरती आसमाँ एक करने का,
जोश था सब अंग का,
पर जब हौसलों की डोर,
जब जब पंक्षी की रूटे,
तब पुलकित पंख पंक्षी के टुटे।

जब चढ़ा था आसमाँ,
तब परिन्दों का मिला था साथ,
एक दुसरों को भगाने में,
बढ़ा रहे थे पंख रुपी हाथ,
पर ऐसे परिन्दों का जब साथ छुटे,
सच यही पुलकित पंख पंक्षी के टुटे।

हाव भरे भाव भरे,
अंग अंग हौसलों का ताव भरे,
बढ़ चला जो क्षितिज की ओर,
अंग रंग और नूतन प्रवाह भरे,
ऐसे ऐसे हौसलों की
जब जब अडिगता छुटे,
पुलकित पंख पंक्षी के टुटे।

हौसलों का साथ था,
पंख पर विश्वास था,
दोनों के समायोजन का,
पंक्षी मन विश्वास था,
परन्तु दोनों के जब साथ छुटे,
सच यही बस सच यही,
पुलकित पंख पंक्षी के टुटे॥

दुविधा

कितनों को बिमार किया है फिर बैठी मुस्काओ ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी मधु परोसकर पागल क्यूँ कर देती है,
आँख तुम्हारी ह्रदय भेदकर घायल क्यूँ कर देती है,
आँख तुम्हारी अगणित सुर-लय अलट पलट कर देती है।
आँख तुम्हारी बासुरियों को पायल क्यूँ कर देती है,
समझ नहीं पाया रहस्य मैं आकर तुम समझाओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी प्रश्न-वाचिका जैसी क्यूँ लहरी है,
आँख तुम्हारी सार-वाचिका जैसी क्यूँ गहरी है,
आँख तुम्हारी तो अभी भौरों की गति वाली थी,
आँख तुम्हारी मुझे देख बोलो फिर क्यूँ ठहरी है,
पुष्टि करो इस संकेतक का अब और तड़पाओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी झुकी पलक के ऊपर क्यूँ तिरती है,
आँख तुम्हारी उठी पलक को पाकर क्यूँ गिरती है,
आँख तुम्हारी जब अमृत में तन से मन तक डूबी है,
आँख तुम्हारी तब घनी घटा चंदा पर क्यूँ घिरती है,
इस उलझे मन को आकर अब तुम्ही समझाओ ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।

आँख तुम्हारी दिन दुपहरिया सपने क्यूँ बुनती है,
आँख तुम्हारी बिना कही बातें अक्सर क्यूँ सुनती है,
आँख तुम्हारी चिंतक चिन्तन और विषय जब खुद ही है,
आँख तुम्हारी कब कैसे किसको और क्यूँ चुनती है,
कुछ प्रश्नों का खोया उत्तर पता निशान बताओं ना,
गुलाबी आँखों की मलिका यह दुविधा सुलझाओ ना।