आप और दीपक ज्योति : भोजपूरी

अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई,
तेल बाती लौ के सामन्जस बिठाई,
अपना गरीबखाना में दिया जलाई,
फिर अन्हरियाँ रात बईठल बिताई,
अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई॥

शीतल चाँद अऊर मनवा चकोर होई,
घी तेल से बनल खाना जी ललचाई,
जब खेत में खेतिहर खेत खोदिहे,
ईंट पाथर भी पेट में जाते पच जाई,
अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई॥

मधुर मनोहर त भरले बा सब दिन,
बाचल दिन आके फिर जी ललचाई,
पीपल नीम महुआ देख जीया जुड़ाई,
अपना गरीबखाना में दीया जलाई,
अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई॥

अन्जान डगर पर बिचार कईल जाई,
खुद उठ सीखल अऊर सम्भलल जाई,
साहस जस तेल दिल में भरत जाई,
फिर कर्म दिया हरदम जलावल जाई,
अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई॥

जब सर्द रात में नंगे बदन लहू सन जाई,
मौत-आगोश में सगरो नजारा खो जाई,
तब रूह से "अतुल" के माटी के खुश्बू आई,
अपना गरीबखाना में एगो दिया जलाई,
साथी अँधेरा मन में होखे त उजाला लाई॥
                       ©अतुल कुमार यादव "अतुल्य"