जिन किस्सों को सुना सुनाकर

जिन किस्सों को सुना सुनाकर रात रात भर तुम्हें जगाया,
उन किस्सों में हमने अपनी कुछ पहचान छिपा रक्खी है।।

झूले  वाले  किस्से   का   मैं   झूला  झूल  नहीं   पाया  हूँ,
राजा रानी  वाला  किस्सा  अब  तक  भूल  नहीं  पाया हूँ,
झूले  वाले  किस्से का अब  तक कुछ  किरदार अधूरा  है,
राजा  रानी  वाला   किस्सा   होता  भी  तुम  पर  पूरा  है,
जिन्दादिल किस्सों में तुम हो  तुझमें जान छिपा रक्खी है,
जिन किस्सों को सुना सुनाकर रात रात भर तुम्हें जगाया,
उन किस्सों में हमने अपनी कुछ पहचान छिपा रक्खी है।।

जिसमें  केवल  तुम‌ ही  तुम  थी  वही कहानी तोल रहें हैं,
अनुभव  वाले  सभी   कथानक   झूठे   मेरे  बोल  रहे  हैं,
दीवारों ‌  में   कैद‌   हमारी   कल्प   भावना   टकराती   है,
इच्छायें  खुद  बाहर  आकर  मानों  तुम  सा  लहराती  है,
तुमने ख्वाबों की सिलवट पर अजब निशान छिपा रक्खी है,
जिन किस्सों को सुना सुनाकर रात रात भर तुम्हें जगाया,
उन किस्सों में हमने अपनी कुछ पहचान छिपा रक्खी है।।

इक  किस्से  में  लड़की  है  वो  लड़की  कुछ  अतरंगी है,
हँस-हँस‌‌ कर बातें  करती  है  कुछ चंचल कुछ सतरंगी है,
पहली बार मिला था उससे  या  किस्मत ने मिलवाया था,
बदले ‌  में   ही  दो   चार  कहानी   मैंने  उसे  सुनाया  था,
वही सयानी  लड़की  अब  तो‌  सारे  गान छिपा रक्खी है,
जिन किस्सों को सुना सुनाकर रात रात भर तुम्हें जगाया,
उन किस्सों में हमने अपनी कुछ पहचान छिपा रक्खी है।।

मेरे जीवन की कुलनिधि का सर्वविदित हर गाँव तुम्हीं हो,
जलने  वाली  हर  देहरी  का  इन्द्रधनुषी  छाँव  तुम्हीं  हो,
किस्से  सारे  सच  हैं  मेरे  सच  के  तो  संसार  तुम्हीं  हो,
कथा-कथानक  चीख  रहें हैं जिनके केवल सार तुम्हीं हो,
सिर्फ  तुम्हीं  हो  जिसमें  मैंने हर मुस्कान छिपा रक्खी है,
जिन किस्सों को सुना सुनाकर रात रात भर तुम्हें जगाया,
उन किस्सों में हमने अपनी कुछ पहचान छिपा रक्खी है।।
                                                ©अतुल कुमार यादव